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________________ निश्चित काय न च्यवन मां रे, भगवती ओ निरधार• • • हो वीर० १० क्षत्रिय कुल मां संक्रम्या रे, कार्य उत्तम छे जेह ; अधम कहे प्रभु वीर ने रे, अधम पणुं लहे तेह हो वीर० ११ ब्राह्मणी कुखे जेनो रे, कल्याणक कहेवाय ; त्रिशला कूखे तेहनो रे, केम अकल्याणक थाय · हो वीर० १२ स्वप्न उतारादि क्रिया रे, वर्त्तमान मां जेह • त्रिशला गर्भ ओच्छव करे रे, श्रेय जाणी सहुतेह हो वीर० १३ पुरुष वेदे ऊपजे रे, सर्व तीर्थंकर जेह ; केम मानो प्रभु मल्लिने रे, थयुं अच्छे एह · हो वीर० १५ स्त्री वेदे स्वीकार हे रे, मल्लि तीर्थंकर जेम ; गर्भ थी गर्भ पणे हुआ रे, चरम तीर्थंकर तेम• • •हो वीर० १५ अक्षर एक उत्थापतां रे, अनंत संसारी थाय ; जिन आणा युत वचन थी रे, निकट भवी ते प्राय• • •हो वीर० १६ श्रद्धा जिन आणा तणी रे, समकित फल देनार ; सूत्र अर्थ प्ररूपणा रे, भव भय टाल नहार· · · हो वीर० १७ कल्याणक स्तवना करू ं रे, वीर तणां छए आज ; भवभीरुता हैडे धरू रे, सिद्धा वंछित काज... हो वीर० १८ गणिवर रत्नमुनीश्वररू रे, रत्नत्रयी दातार; प्रेमे थुणतां नीपजे रे, “भद्र" हृदय मनहार• • • हो वीर० १६ २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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