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(१४) श्री वीर षट कल्याणक स्तवन
ढाल-"हो चंद्वानन जिन !" ए राग तुझ कल्याणक जेह रे, आगम मां थुण्या ; ध्यावं छं धरि नेह, हो वीर जिनेश्वर १ प्राणत कल्प थकी चच्या रे, गोत्र बंधन अनुसार ; ब्राह्मणी कूखे अवतर्या रे, प्रथम कल्याणक सार...हो वीर० २ ब्यासी दिवस बीते थके रे, शक्रन्द्र प्रभु दीठ ; मन विमासण मां पडयु रे, कारण एह अदीठ...हो वीर० ३ ऊँच कुले धरूं एह छे रे, माहरो कुल आचार ; जेह थकी प्रभु वीर नो रे, श्रेय हुवे निरधार.. हो वीर० ४ राणी सिद्धारथ रायनी रे, त्रिशला उदर मझार ; ठविया हरणगमेषीए रे, बीजु कल्याणक सार...हो वीर०५ जन्म दीक्षा केवल हुवा रे, उत्तराफाल्गुनी जेह ; । स्वाति मोक्ष सिधाविया रे, छठें कल्याणक एह.. हो वीर० ६ सर्व तीर्थ कर आश्रिता रे, पंच कल्याणक कीध ; हरिभद्र पंचाशके रे, अर्थ प्रगट ए लीध.. हो वीर० . ' आचारांग ठाणांग जी रे, कल्पसूत्र मनोहार ; छए कल्याणक वीर नां रे, प्रगट पणे अधिकार हो वीर०८ जन्म दीक्षा केवल थये रे, उद्योत हुवे तीन लोक ; मोक्ष गये तम ऊपजे रे, बीजो अंग आलोक हो वीर० ॥ च्यवन रहित सुरनर करे रे , महोत्सव रूड़ी प्रकार ;
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