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सामान्य जिन स्तवन
चाल-वेर वेर नहीं आवे, अवसर अवलंबन हितकारो प्रभुजी तेरो (२) पावत निज गुण तुम दर्शन सें, ध्यान समाधि अपारो ॥प्र०॥ १॥ प्रगटत पूज्य दशा पूजन से, आत्म रमण विस्तारो ॥ प्र० ॥२॥ भावत भावना तन्मय भावे, अड्ढ पुग्गल निस्तारो॥ प्र० ॥३॥ रोग सोग मिटत तुह नामे, टत कर्म कटारो ॥ प्र० ॥४॥ श्रीजिनरत्न-त्रयी प्रगटावत, भद्र तया भव पारो॥ प्र० ॥५॥
चाल-वेर वेर नहीं आवे, अवसर चाहुं शरण तुम्हारो हो जिनवर (२) भव अटवी मां काल अनादि, पाम्यो दुख अपारो ॥ चाहुं० ॥१॥ दृढतर ध्याने श्रेय विचारत, सुखद मार्ग तुमारो॥ चाहुं० ॥२॥ मुक्तिपुरी साधन संपादन, सर्वविरति स्वीकारो॥ चाहुं० ॥३॥ निर्मल ध्याने कर्म खपावत, भूमण मिटत गति चारो॥चाहुं०॥४॥ जीव अमलना रत्नत्रयी संग, सादि अनंत अपारो॥ चाहुं० ॥५॥
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