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________________ वागजाल सौ छोडिने, हुं मारू दई मार ; आप आप-रूपे रमे, प्रायश्चित नो सार...१६६ कायानी माया तजी, समरस चिद्घन मूर्ति ; देहाध्यास विमुक्तता, कायोत्सर्ग सुयुक्ति . १६७ मूल-भूल थोड़ी छता, व्याज तणो नहिं पार ; ____ माटे मूल-प्रायश्चित्त थी, सहजानंद अपार...१६८ सहज-समाधि दृश्य अदृश्य करी अने, अदृश्य ने दृश्य रूप ; ध्यावे अलख स्वभूपने, सहज-समाधि-स्वरूप. . .१६६ भावि-चिन्ता भूत-स्मृति, वर्तमान आशक्ति ; टाली मन-मौनी थता, सहज-समाधि-व्यक्ति...१७० घरे रहो तो नर्शवत्, नटवत् रहो बजार ; साम्य-भाव जो ना डगे, सहज-समाधि अपार...१७१ सावद्य-विरत त्रिगुप्त ने, इन्द्रिय समूह निरुद्ध ; स्थायी सामायिक तेह ने, सहज-समाधि विशुद्ध...१७२ वर्तन जेवू निज मणी, तेवू पर-प्रति होय ; स्थायी सामायिक तेह छ, समाधि कारण सोय.. १७३ दैन्य के अभिमाननी, आग तणो न प्रवेश ; स्थायी सामायिक तेहछे, सहज-समाधि विशेष...१७४ दुःखिया मां सुख वांटी' ने, सुख-दुःख थी रहे दूर ; स्थायी सामायिक तेहने, समाधि छे भरपुर.१७५ १ दानदेकर २३८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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