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________________ अनुकूल प्रतिकूल हो! प्राप्त परिस्थिति माय ; रुष तुष के गभराट' ना, अविकृति करण ज त्यांय... १५६ निमित्त वसे जे जे उठे, सारा-नरसा-भाव ; भिन्न जाणी समरस रहे, भाव-शुदिध नो दाव १५७ देहभाव आलोचीने, आतम भाव विशुद्ध ; कार्य प्रभुता प्रगट कर, सहजानन्दघन बुद्धः . १५८ शद्ध प्रायश्चित ८ करी भूल फरी ना करे, चीलो बदली चाल ; . पड्या पछी झट उठीने, प्रायश्चित शम-ढाल...१५६ कषाई ने संहारवा, एकाग थई अज' चित्त ; सबल घसारो जे करे, ते निश्चय-प्रायश्चित्त...१६० गुस्सा पर गुस्सो करे, दीनपणानु मान ; माया नो साक्षी रहे, लोभ आत्मनु ध्यान...१६१ उत्कृष्ट निज अनुभूतिमा, अफर जम्युजे चित्त ; . बीजु कई न सांभरे, ते निश्चय प्रायश्चित्त...१६२ निरीह ऋषिराजो तणी, जे जे चेष्टा थाय ; . ते बधुज प्रायश्चित छ, अधिक शु कहेवाय ? . . .१६३ कर्म-गंन दारू तणो, एक भड़ाके नाश ; ब्रह्माग्नि कण एकथी, प्रायश्चित ए खास.. १६४ ज्ञान आरसी मां अहो ! आखु जगत् शमाय ; तेमज आतम-ध्यानमां, साधन सर्व शमायः . .१६५ १ उन्माद २ कषायभाव ३ आत्मा २३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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