SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कंचन-लोह-बेड़ी समा, वर्जे पुण्य ने पाप; __ स्थायी सामायिक तेहने, रहे समाधि व्याप...१७६ हास्य शोक रति अरति भय, घृणा काम नहिं लेश; स्थायी सामायिक तेह छे, सहज समाधि प्रवेश."१७७ तप जप संयम नियम ब्रत, जो समता सह होय , __ स्थायी सामायिक तेह छे, समाधि कारण सोय...१७८ आर्स-रौद्र स्पर्शे नहीं, धर्मे शुक्ल प्रवेश स्थायी सामायिक तेहने, सहज समाधि अशेष...१७४ मौन व्रत उपवास के, गुफावास तन-कलेश; शास्त्रज्ञान पण शुकरे, जस मन साम्य न लेश"१८० माटे साम्य-गृहे रही, रही, करो सकल व्यवहार ; प्राप्त-उदय साक्षी पणे, सहजानन्द जुहार"१८१ शुद्ध-भक्ति , १० (गुरु चंदना) परम पंचम' भाव थी, अडग मन सावधान ; अभेद रत्नत्रये जुड़े, कार्य-भक्ति-निर्वाण...१८२ भक्ति-मुक्त-सत्पुरुषनी, प्रशस्त राग प्रधान ; ___ अकपट शरणापन्न थई, कारण-भक्ति प्रमाण १८३ रागादिक परिहार मां, जोड़j राखे चित्त; सर्व विकल्प अभाव सह, योग-भक्ति समचित्त...१८४ जोड्थु राखे आत्म ने, आप्त बोधमा जेह; चोक्खो थई स्वच्छंद दही'; योग-साधना तेह.."१८५ १ पारिणामिक २ जनाकर २३६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy