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________________ कारण प्रभु भिन्न जे रही, परिग्रह-गाह-चूड़ ; मूर्छा नहीं जग एंठमां, अपरिग्रह व्रत मूल...१०३ कारण प्रभु दरबार प्रति, गमन ईर्यापथ शोध ; संयम हेतु प्रवर्त्तना, इर्या-समिति प्रबोध ...१०४ भेद विज्ञान स्याद्वाद सह, अनुभव-भाषण जेह; सावद्य-वचनो त्यागी ने, भाषा-समिति एह. . .१०५ कारण-प्रभु गवेषी ने, अणाहार-पद लीन; ___ सहजानन्द-रस पी छके, अषणा-समिति पीन...१०६ बहिरात्मा-निक्षेपी ने, अंतरात्म-आदान ; परमात्मानी ध्यावना, तूर्य-समिति प्रधान...१०७ आत्म भांति अविरति तथा, प्रमाद कषाय योग ; क्षपक-श्रेणिए परठवे, पंचमी समिति अयोग १०८ कारणप्रभु पदपकंजे, मन-मधुकर तल्लीन; निर्विकल्प अनुभव-रसे, ए मनगुप्ति अदीन...१०८ मन-मौनी थातां रहे, वचन-वर्गणा स्तब्ध ; ग्रहण-निसर्ग न तेहनो, वचन-गुप्ति उपलब्ध...११० चेतनमय निज कायमां, वास्तु करे अडोल ; विदेहिता अवधूतता, काय-गुप्ति अणमोल"१११ महाव्रत-गुप्ति-समिति वड़े, स्वरूप साधक जेह ; निरालम्ब निग्रंथ ए, समाधिष्ठ मुनि तेह...११२ जेना अनुभव-बोधथी, प्रगटे आतमज्ञान ; श्रुत-केवली निर्गथ ते, उपाध्याय भगवान...११३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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