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________________ अलिंग- गहण अव्यक्त ए, अरस अगंध अरूप ; असंहनन अबद्ध-स्पृष्ट, अबद्ध-स्पृष्ट, सहजानंदघन भूप..२ अज अविनाशी अतींद्रिय, अमल सिद्ध- सम-एह ; घट-घट परगट बसी रह्यो, सहज समाधि सुगेह ..६३ देह- धर्म - आरोप- सौ, व्यवहारे ए मांहि ; शोध्या जड़े न कांइ ६४ शुद्ध भावने परखतां, शुद्ध भावने स्पर्शतां, दर्शन - मोह - विनाश ; चित्त- चंचलता भोग- रुचि, साधन श्रम नो नाश... ६५ देहात्मबुद्धि टली खुले, क्षायिक दृष्टि सुज्ञान, विमोह बिभुम संशयो व्यतीत तत्व-विज्ञान६६ विज्ञाने इच्छा शमे, गमे आत्म-स्थिरता ज ; बाह्यांतर व्रत-तप सधे, शुद्ध भाव फलतां ज६७ शुद्ध भाव रहस्ये रमो, तजी शुभाशुभ भाव ; शे'नी राह जुओ हवे, सहजानन्दघन दाव६८ शुद्ध चारित्र कारण- प्रभु 'रखवाल' जे, स्व-पर-प्राण पीड़े द्रव्य स्वतन्त्र प्रतीति सह, ४ अप्रमत्त शुद्धभाव ; नहीं, अहिंसा भव-जल-नाव• • ६६ भाषण हित-मित-पथ्य ; - राग-द्वेष- मोहने तजी, आत्म-भान सह सत्य १०० कामण वगणा, चोरे नहिं पर द्रव्य ; यावत् सर्व विकल्प सन्यास ए, अचौर्य व्रत कर्तव्य १०१ कर्मोदय मां ना भले, ना पर परिणति = रंग, अखंड ब्रह्म-समाधि ज्यां ब्रह्मव्रत ना स्त्री - संग...१०२ Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only २३१ www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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