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पांचे अमूर्त स्वरूप छे, मूर्त ज पुद्गल यंत्र ;
क्षीर- नीरवत् एकठा, सौ शास्वत ज स्वतंत्र ८१ आप आपने शोधिने, लखी स्वतंत्रता आप ; बाकी सो भुल्वे सधे, सहजानंद अमाप ८२
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शुद्ध-भाव कर्मोपाधिज गुण- पर्यय, रहित 'प्रभु' उपादेय ;
स्वात्म भिन्न जीवादि सौ, बाह्य तत्व हे हेय• • ८३ 'कारण प्रभु' शुद्ध भावमय, त्यां न शुभाशुभ भाव ;
कर्म शुभाशुभ कर्मफल, शात अशात अभाव...८४ राग द्वेष अज्ञान ना, नहीं
मान-अपमान ;
विभाव रूप स्वभावके, हर्ष शोक नां स्थान...८५ द्रव्य कर्म स्थिति बंधना, अष्ट विध प्रकृति बंध ;
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तेथी प्रदेश - अबंध ८६
कर्म निर्जरा
कर्म रजनुं प्रवेश ना, कालनी, फलद शक्ति= रसबंध ; द्रव्य-भाव कर्मोदयी, स्थानो तु न सम्बन्ध क्षायिक - क्षायोपशमिक ने, औदयिक उपशम भाव ; आवरणो सापेक्ष ए, चारे स्थान- अभाव जाति रोग जरा मरण, कुल योनिनां भेद; जीव स्थान चउ-गति-भ्रमण, मार्गण-स्थान न खेद निर्दोषी निर्भय अमम, अमम, निःशरीर निर्दण्ड ;
नीरागी निमूढ़ छे, निरालंब निर्द्वा द्व...६० निःक्रोधी निर्मान-मंद, निःशल्य निष्कामी निर्मन्थ छे,
निराकार ; ज्ञान- चेतनाधार ६१
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