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________________ सत्पथ हद लंघे नहीं, अतींद्रिय अवधिज्ञान ; छोड़े ना उन्मार्ग हद', विभंग अवधि-अज्ञान...३७ मार्ग स्थितना मनःपर्यय, पामे पर्यवसान ; समाधिस्थ मन जेहथी, ते मनापर्यवज्ञान...३८ मागें संचरतांय पण, मार्ग-बाह्य देखाय ; पथ-परमावधि ए अतः, लोकालोक जणाय...३६ उपयोगे उपयोगनी, घनता सधी अखंड ; कार्य-स्वभाष ए निर्विकल्प, केवलज्ञान अमंद...४० केवलज्ञान-प्रतीति ए, परिणमन=सम्यक्त्व ; ___ सर्व गुणांशानुभूति ए, एज तत्व सत्त्व...४१ आठ-कर्म-आधारथी, टक्यो विषम संसार ; मोहनीय वश.सात छे, मोहे क्षोभ अपार...४२ माटे दर्शन-मोह छे, अनंत दुःखनु मूल; सम्यक्त्व छे, तस औषधि, करे मोह उन्मूल...४३ तेथी ए प्राप्तव्य छे, ए वण साधन व्यर्थ ; ___तप जप संजम साधना, ए सह ते परमार्थ...४४ निरंतर स्व-प्रतीति ते, क्षायिक-सम्यक्त्व शांति ; वटक क्षायोपशमिक ने, उपशम वृत्ति-उपशांति...४५ दृग-ज्ञाने स्वरूपस्थता, ते सम्यक् चारित्र; उलटुं चारित्र-मोह छे, ते ज क्षोभ अविरत्त...४६ मिथ्यात्व अविरति अज्ञता, विभाव-गुण उन्मार्ग; __ सम्यग-ज्ञान-दृग-चरणते, स्वभाव-गुण सन्मार्ग...४७ १ ज्ञायक सत्ता न लखे - २२६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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