________________
वस्तु सामान्याकार मय, चित्प्रकाश-आभास ;
.. ते दर्शन अने ज्ञान तो, वस्तु-निर्णायक खास...२६ रुचित वस्तु विशेषमा, दृग-ज्ञाने रममाण ;
चित्प्रकाश चारित्र ते, कहे मर्मना जाण. . .२७ कारण-स्वभाष-दृष्टि छे, आतम श्रद्धा मात्र ; . स्वात्म-दर्शने लीन ते, सम्यग दर्शन अत्र...२८ आत्म-साक्षात्कार ए, आत्म-प्रतीति एह ;
वलावो मुक्ति-मार्गनो, ग्रन्थि-भेद सह जेह...२६ द्रष्टामां दृष्टि तणी, घनता सधे अखंड ;
केवल द्रष्टारूपता, कार्य-दृष्टि निर्द्वन्द...३० . आत्मा भूली जोवु ते, मिथ्या-दर्शन-मोह ;
चक्षु अचक्षु विभंग त्रय, विभाव-दर्शन द्रोह.. ३१ छे सहजात्म-स्वरूप ते, कारण-स्वभाव-ज्ञान ;
प्रातिभ=केवल बीज छे, तद्-विपरीत अज्ञान...३२ सम्यक मिथ्या भेद बे, विभाव-ज्ञानोपयोग ;
मति-श्रुत-अवधि उभयवश, मनःपर्यव धुर-योग..३३ अवधि-मनःपर्यव विकल, केवल सकल-प्रत्यक्ष ;
प्रातिभ स्वरूप-प्रत्यक्ष छे, मति-श्रुत बेय परोक्ष...३४ . सहज-ज्ञान आराध्य छ, जस फल केवलज्ञान ;
श्रुत-आलंबन दृढ़ करी, अन्ये न दीजे ध्यान...३५ सुमति मार्गानुसारिता, कुमति उन्मार्ग-खाण ; संत-बोध ए सुश्रुति छ, कुश्रु ति अंधनी वाण -- ३६
२२५
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org