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नर तिरि नारक देव जे, आप आपणा स्वांग ;
.. माने आत्म स्वरूप ते, बहिरात्मा पी भांग.... देह देही न तू अरे !, स्वगम्य देहातीत ; . .. अनन्त चतुष्ठय भूप छो, कर गुरुगम सुप्रतीत...६ मोह मदिरा पी छक्यो, बके भूत छल जेम ;
.. १० निज पर तन हूँ-तुं कहे, देहाध्यासी एम...१० मात-पिता-स्त्री-तनय तन, धनगृह आ मारांज ;
. अहँ-ममताग्रह-मगर मुख, बूड़े भव जलमांज...११ भांन्ति दृढ़ संस्कारी ने, फरी ज्यां जन्मे एह ;
. देह ज आत्मा मानतो, धरे देह मां नेह...१२ एम ज मूढ अनादि थी, देह जेल ठेलाय ; .. निज बोधे निज मां ठरे, जेल मुक्त तो थाय...१३ जड़ महिमा जड़ता वड़े, चेतनता विसराय ;
ग्रहे भोगवे जड़ज ने, हा! हा! जगत हणाय...१४ देहे आतम भावना, दुःख मूल संसार ; ..: आत्म भावना आत्ममां, एज समज नो सार...१५ अमृत भवन गवाक्ष थी, पतित विषय विष बुन्द ; ... मूर्छित थइ कदी न लह्यो, आत्म तत्व सुख कंद...१६ तन वचन मन मौन थई, कर तु योग समास ; ... पिंजर गत शुक सीख ले, जो परमात्म प्रकाश...१७ जाणनार देखाय ना, दृश्य शरीर न जाण ;
तो मूरख शाने बके, मौने प्रगटे भाण...१८
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