________________
एवो एक प्रदेश ना, ज्यां न भन्यो ए अंध;
. ज्ञानांजन विण केम लहे, देहे विभू अबंध"६६ स्वयं भमे ना लंगड़ो, अंधात्मा परदेश ; कर्म-विधि जग फेरवे, विविध सजावी वेष...६७
. [अपूर्ण रचना]
.. (१९६) समाधि-माला
पावापुरी ३-८-५३ । आत्मा आत्मपणे अने, जाणी जड़ जड़ रूप ;
____ ज्ञायक भाव स्थिर थया, वंदु सिद्ध स्वरूप...१ बोल्या वण सत् बोधता, तीर्थराज गत काम ;
शिव ब्रह्मा हरि बुद्ध जिन, निज रूपेज प्रणाम...२ अनुमान श्रुत अनुभवे, कहुं स्व आत्म विवेक ;
___ यथाशक्ति समचित्त थी, निज सुख कामी नेक...३ बाह्य अन्तर परमातमा, त्रिविध आत्म प्रति देह ;
. बाह्य तजी अन्तर सजी, भज परमात्म विदेह...४ आत्म भांति देहादि मां, बहिरात्मा मति अन्ध ;
भांन्ति मुक्त अंतरात्मा, परमात्मा ज अबन्ध...५ शुद्ध-बुद्ध-प्रभु-केवली, ईश्वर-मुक्त-परात्म ;
अव्यय-अमल-असंग-जिन, परमेष्ठी परमात्म...६ गिर्वी आत्मा देह मां, ब्हारे चित्त प्रवाह ;
चिद् जड़ मिथ+आत्त्वे वसे, ए बहिरात्म गवाह...७
२१२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org