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गुरु उपदेशे सज्ज थई, अनुभववा सिद्धान्त ;
कान जीभ थी मौन था, निर्विकल्प अभान्त...१६ पर ग्रहण निज त्याग ना, केमे करी शकाय ;
.. ज्ञाता द्रष्टा साक्षी तु, अनुभववन्त सदाय...२० ठंठा ने नर मानी ने, जेम पथिक उमाय ; । तेम भूमायो तन विषे, ज्यम फुटबोल फुटाय..२१ ढुठं छे खात्री था, पथिक अभयता पाय ; ___ देह-जीव भिन्न परखता, आत्म-भांति लय थाय...२२ आप आप मां आप थी, आपे अनुभव थाय ;
सोहं-सोह-तेज हूँ, समजी आप शमाय...२३ भाव-रात फीटी थयो, स्वयं ज्योति सुप्रभात ; . अगम अगोचर अलख हुँ, सहजानंद विख्यात...२४ मने तत्त्व थी देखता, ज्ञानाकार स्वभाव ; ... शत्रु मित्रतादिक टले, सौ रागादि विभाव...२५ मने न देखे अज्ञ जन, शत्रु मित्र केम थाय ? ... मने देखतां सन्त जन, शत्रु मित्र केम थाय ? ...२६ अम बहिरात्मता तजी, सज्ज थई अन्तरात्म ;
.. सौ संकल्पो मूकी ने, भाव ! भाव ! परमात्म.. २७ दासोऽहं सोऽहं अहं, परा-भक्ति क्रम पाय ; .: ढ़ संस्कारी भावना, आत्म ठरणता थाय...२८
मूढ करे विश्वास ज्यां, खरं भयास्पद तेज ; ..... डरे अहो ! निज आत्म थी, खरु अभयपद एज...२६
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