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________________ ( १९५) परमात्म- प्रकाश- भावानुवाद सिद्ध बुद्ध परिमुक्त जे, सहज समाधि स्वरूप ; बोधी दृढ़ करवा नमू, पराभक्ति अनुरूप ं ं:१ शिव अमल अज ज्ञानमय, परम समाधि भजंत ; ते बंदु श्री सिद्ध गण, थाशे जेह अनंत २ समाधि महानले, कर्मेन्धन होमंत; ते हुं बंदु सिद्ध गण, करी रह्या भव अंत ३ • परम वली ते बंदु सिद्ध गण, वसी रह्या लोकान्त ; ज्ञाने त्रिभुवन गुरु छतां ते वली बंदु सिद्ध गण, जेनो स्वात्म लोकालोक प्रत्यक्ष निज, आनंदघन पुनर्जन्म न धरत...४ केवल - दर्शन - ज्ञानमय, जिननाथ ; नमुं भक्तिए जेमणे, बोध्या विश्व पदार्थ ...६ लखि परमात्मा स्वात्म मां, परम समाधि धरंत ; निजानंद हेते नमु, सूरि पाठक मुनि संत ७ स्मरी परमेष्ठी भाव थी, गुरु योगीन्द्र मुनीश ; २०६ निवास ; ज्ञान दर्पणे जास५ पूछे. शरणापन्न थइ, भट्ट प्रभाकर शिष्य...८ संसारे वसतां गयो, स्वामी काल अनंत ; मैं सुख ना लघु, क्यमथाय दुख अंत चारे गति दुख तप्तने, शरण्य जे प्रभु होय ; पण ते परमात्म स्वरूप ने, कहो कृपा करी मोय. . .१० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only • www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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