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________________ कर्मोदय योगिक-क्रिया-मात्रे बंध न थाय; ___इष्टा-निष्ट परिणाम थी, मोहे अज्ञ बंधाय.g वीतराग नी सौ क्रिया, धर्मोपदेश विहार ; अघाति कम वशे सहज, ज्यम स्त्री-मायाचार १० मोह विहीन प्रवृत्ति सौ, बंध निवृत्तिरूप ; चिदानन्द विलसन क्रिया, मात्र क्षायिकी रूप...६१ सर्व आत्म प्रदेश थी, सर्व माण एक साथ ; तेज क्षायिक-ज्ञान वन, ईश्वर त्रिभुवन नाथ...२ जेणे जाण्यो एक ने, तेणे जाण्युं सर्व ; ___'जो न जाण्यों अंक तो, जाण्यं ते सह गई..४३ सर्व श्रेय जो ना लखे, समकाले निज मांहि पूर्ण पणे निज रूप नो, अज्ञ कयो श्रुत मांहि...६४ क्रम थी ज्ञेयालंबतुं, ज्ञान अनित्य असार; क्षायोपशमिक असर्वगत, अक्षायिक निर्धार...६५ माटै ज्ञायिक ज्ञान नु, अहो ! अहो !! माहात्म्य !!! शाप्ति क्रिया पलटे नहीं, सहजानंदी स्वास्थ्य...६६ सर्व ज्ञय जाणे छता, न परिणमे ते रूप ; प्रहे न उपजे ते पणे, अबंध ज्ञानी भूप..१७ मोठ -पद्याङ्क १७ से ३६ तक का हिन्दी रूप पृ० १३८-३६ में "लोकनालिदर्शन" माम से छपा है। - - २०५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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