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________________ कर्तृत्व करणत्व द्वय, अभिन्न शक्ति स्वरूप ; ज्ञायक झान एकत्त्वता, चिन्मय आत्म स्वरूप स्व-पर ज्ञायक ज्ञान थी; ज्ञेय स्व पर के रूप ; आप प्रकाशे आप थी, सूरजवत् चिद् भुप.५६ ज्ञान न जाणे ज्ञेय तो, ज्ञाने सुं ज्ञानत्व ? ज्ञाने ज्ञ यो अलखतो, ज्ञ ये शुं ज्ञ यत्त्व...८० ज्ञेय शक्ति अचिन्त्य मां, अर्पण धर्म स्वभाव ; ज्ञान शक्ति अचिंत्य मां, अद्भुत ग्राहक भाव त्रिकालिक पर्याय सौ, विशिष्ट स्पष्ट जणाय ; चित्रपट शुद्ध ज्ञान मां, वर्ते जगत सदायर चित्रकार ना चित्र मां, भूत भविष्य शमाय ; शुद्ध ज्ञान असमर्थ जो, दिव्य केम के'वाय...८३ दाह्य मात्र ने बालवा, पावक जेम समर्थ ; ज्ञेय मात्र ने जाणवा, आतम-ज्ञान समर्थ...८४ इन्द्रिय सन्निकर्ष ना, भूत भावि पर्याय ; __ तेथी इन्द्रिय ज्ञान तो; असर्वज्ञ सदाय ८५ मन इन्द्रिय उपदेश वश, क्षयोपशम संस्कार ; पराधीन ईहादिके, इन्द्रिय ज्ञान . असार"८६ कालो गोरो स्त्री पुरुष, पशु पक्षी वृद्ध बाल ; स्थूल मूर्त जड़ पर्यये, इन्द्रिय ज्ञान बेहाल ८७ ज्ञेय अर्थ परिणमनता, कर्म-भोग अंध-चाल ; त्रिदोष सन्निपात थी, वलगे कर्म-जंजाल २०४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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