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गति आगति निज परतणी, भूत भविष्य प्रपंच,
आ काले पण-गम्य छ न धरो शंका रंच...३४ लोक पुरुष संस्थान ए, धर्म ध्यान अनुभूति
ज्ञेय ज्ञाननी भिन्नता, प्रकट:स्व पर सुप्रतीति...३५ स्व पर प्रतीति बले सहज, वृतिओ आल्माधीनः
क्षायिक समकित प्रगटता दर्शनमोह प्रक्षीण...३६ प्रातिभ केवल-बीज छे, अरुणोदय चिद् ज्योत ;
"५५ चिद् ज्यात
देशे केवलज्ञान-ए, चित्त प्रवाह प्रति श्रोत. .३७ मति-श्रुत-अवधि मनःपर्यव, स्वापेक्षक चि-अंश;
ते प्रातिम तारतम्यता, तिमिर अज्ञता वंश...३८ दर्शनमोह-अरिहंत ते, जिनवत्. जिन सुप्रमाण ;
प्रातिभज्ञानी ते. कहया, केवल बीज प्रधान...३६ अरुण - प्रकाशे सूर्यवत, जेम बधु देखायः;
प्रातिभज्योते ज्ञानी ते, स्व पर प्रत्यक्ष जणाय...४० लखे स्व-स्वरूप सिद्ध सम, देह भिन्न असंग ;
शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन, सहजानन्द अभंग...४१ अपूर्व परमाह्लादता, अनुपम सम अविच्छिन्न ;
विषयातीत अनंत ते, चिदानन्द स्वाधीन ४२ आत्मास्तित्त्व प्रतीतिए.. सर्वोत्कृष्ट निवास
प्रगटे केवलज्ञान तो, नवमे समये खास...४३ समय मात्र पण संग-पर, पामे ना उपयोग
. तो प्रमटे केवल दशा, अखंड: आत्मारोग्य..४४ २२०
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