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जेक समय परमाणु ने, प्रदेश-ज्ञान जो थाय ;
प्रगटे केवलज्ञान तो, वीतराग असहाय."४५ इन्द्रिय-संज्ञा-योग नय, परथी आप असंग;
उपयोगे उपयोगता, केवलज्ञान अभंग"४६ तद् प आत्मा ध्यावतां, चिन्मय सरहद वास ;
चित्त शुद्धि पूरण थतां, घाति-कर्म-मल नास"४७ अन्य अध्यास विमुक्त घन, ज्ञान-स्थिति जे शुद्ध ;
आत्मज्ञान जे स्फटिक वत्, केवलज्ञान प्रबुद्ध"४८ योग छते उपयोगर्नु, छेज प्रयोजन खास ;
तेथी सयोगी जिन लगी, छेज बुद्धि बल तास"४६ संग प्राप्त अणु-ज्ञान तो, अनुभव गम्य ज जाण;
अणु स्वरूप स्यम सर्व नु, बुद्धि बले सुप्रमाण "५. नभ-प्रदेश समीपस्थ तो, अनुभव-गम्य प्रकार
शेष अनंस प्रमाणता, बुद्धि-गम्य निर्धार"५१ अनुभवाना समयवत् , काल अनादि अनंत ;
__ स्वरूप भूत मविष्य नु, बुद्धि-गम्य ज लखत "५२ स्वात्मा अनुभव-गम्य पण, सर्व परात्म-स्वरूप ;
- बुद्धि-गम्य प्रमाण त्यम, धर्म अधर्म प्ररूप"५३ अनुभव सह बौद्धिक बले, जिन-सयोगी-सर्वज्ञ ;
सर्व क्षेत्र-यम-भाव थी, सर्व द्रव्य प्रगट-ज्ञ...५४ योगी-केवल द्विविध छे, धुर-समयी चल योग ;
__ अंत्य समयी स्थिर योग सह, अघाति पूर्व प्रयोग.५५
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