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नाभि चक्र स्थिर-ज्योत थी, द्विप समुद्रादि अशेष;
खंड देश वन नगर गृह, लखाय व्यक्ति विशेष. . .२३ अधोलोक अधश्चक्र क्रम, सुर असुर व्यन्तरादि;
सप्त नरक नारक लखे, दुखिया जीव प्रमादि...२४ उध्व, उध्वचक्र क्रमे, उदरे ज्योतिष्चक्र
कल्पवासी श्रेणि बबे, प्रति पांसडीए वक्र ...२५ ग्रीवाए अवेयको, अनुदिश अनुत्तरसिद्धः .
शिर-गोलक चक्र-क्रमे, दूरदेशी-द्ध...२६ दक्षिण-भूतल कमल मां, पैक्रिय लब्धि प्रकाश;
आहारक वामे अहो !, संयमधर ने खास...२७ दक्षिण-स्तन तल कमल मां, तेजस मापक तंत्र;
वामे कृष्ण राजी अहो ! कार्मण मापक यंत्र...२८ जेम जेम संवर वधे, त्यम कार्मण-मल नाश;
. कमल श्वेतता अनुसरे, एज निशानी खास...२६ माटी शुद्ध कर्या पछी, चश्मा दुर्बिन थाय, . कषाय भाव निवारतां, चित्त शुद्धि प्रगटाय...३० नानी चीजो दाखवे, मोटी दुर्बिन जेम;
योग दृष्टि तारतम्यता, चर्म चक्षु सह एम...३१ द्रव्य क्षेत्र काला दिनु, भाख्युं जे परिमाण;
योग दृष्टि सापेक्ष ते, चर्म दृष्टि अप्रमाण...३२ अगम अलोक ज आतमा, लोके लोक स्व-मांय ;
लोका लोक प्रत्यक्षता, प्रातिभज्ञान पसाय...३३
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