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शुभाशुभ चल-भाव छ, शुद्ध अचल चिद्र प;
सुख-दुख फल चल-भावना, अचल फल आनंद भूप...१३ फल ओलखववा लक्षणे, सुख ते अन्तर्दाह;
दाह मुक्त आनंद ने, दुःख-बाह्यान्तर दाह...१४ शुद्ध भाव-चारित्र थी, चिदानंद घृतपान;
शुभ चारित्रे स्वर्ग-सुख, जेम उष्ण-घृत स्नान. १५ अशुभ अनाचारे फले, भीषण चउगति भान्ति;
कुनर-तिरि-नारक पणे, लहे त्रि-ताप अशान्ति...१६ अधिकारी :- दोहा :न जड़ मान मतार्थिता, अनुकूलता दासत्व;
विषय मूढ स्वच्छंदना, ते आत्मार्थी सत्व...१७ न क्रिया जड़ शुक ज्ञान ना, ना पर-रंजक वृत्ति
दृष्टिराग हठवाद ना, ए सत्संगति-रीति...१८ संयम तप अकषायता, सम सुख-दुख चित्त-वृत्ति;
शुद्धभाष-अधिकारी ते, सन्मति मुमुक्षु-प्रवृत्ति १६ ग्रन्थ विषय :- दोहा :सन्मति सत्संगे रही, करतां सत्श्रुति-पान;
शुद्ध स्वभावे परिणमी, पामे प्रातिभशान...२० बाह्य भाव रेचक करी, रक पूअंतर्भाव;
परम भाव कुंभक बले, ध्यावे शुद्ध स्वभाब...२१ बंकनाल षटचक्र ने, भेदी शोधे पिण्ड;
दिव्य नयन निरखे अहो, व्यापक सकल ब्रह्मांड...२२
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