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________________ आप ज दुःखी आपथी, क्या करवी पोकार; दुःख कारण ने पोषतो, आप ज थाय खुवार...३३ निजमाथी निपजावी ने, निज पर करी सवार; भार वहन दुःखथी डरे, ए मूरख सरदार...३४ दुःख कारण जाणे छते, पण विरमे नहीं जेह; जाण्यु ते सौ छे वृथा, कह्यो अज्ञानी एह...३५ जणावीने विरमावतो, दुःख कारणथी जेह ; तेज ज्ञान प्रमाण छे, ज्ञाने दुःखनो छेह...३६ भेदज्ञान छींणी वडे, भेदीने अज्ञान ; ज्ञान-मोह भिन्नता करी, वसे सन्त निज भान...३७ वहाण पकड सिन्धु वमल, वमल शम्ये छंडाय 3; विकल्प वमल शमावीने, मोह पकड दूर थाय. . .३८ चल अनित्य मोहादिए, वाई वेगादिक जेम ; . . अशरण दुःख दुःखफल ज ते, थाय ताहरां केम ? ३६ स्वभावथी विज्ञानघन, तुं चिद-ज्योति अनन्त ; षट् कारकथी पार शुद्ध, अखंड अनुभववन्त...४० दर्शन ज्ञाने पूर्ण ने, अजरामर एक सत्व ; अड निमित्त ज-जड मुक्त तुं, छो पारमार्थिक तत्त्व...४१ मोहादिक अन्तरंग ने, वर्णादिक बहिरंग, नियमा ए जड संगथी, ज्ञानी रहे असंग...४२ [विविध पुदगल कर्म ने, जाणे जाण सदाय ; - ग्रहण परिणमन उपजन, पण तेनु नव थाय...४३ १६५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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