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________________ विविध निज परिणाम ने, जाणे जाण : सदाय, गहण परिणमन उपमन, पण परतुं नव थाय...४४ सुख दुःखादि जड कर्मफल, जाणे जाणः सदाय ; ग्रहण -परिणमन उपजन, पण तेनुं नव थाय"४५ रहे एम जड द्रव्य पण, निज भावे ज सदाय ग्रहण परिणमन उपजन, चेतननु नव थाय...४६ जीवभाव हेतु लही, जड परिणमन ज थाय ; हेतु-लही जड कमेनो, अज्ञ जड़े मोहाय."४७ निमित्त नैमित्तिकपणुं, जीव-भाव-जड-भाव ; उभय परस्पर निमिचथी, कर्ता थाय विभाव."४८ जीव भाव जड ना करे, जड भावो नहीं जीव ; - आप आपणा भावना, कर्त्ता बेऊ सदैव "४६ जाणे करे रमे सदा, चेतन आप स्वभाव ; करे भोगवे ना कदी, नियमा ते जड भाव]-५० ॐ नमः सहजात्म स्वरूपाय (१९४) ज्ञान-मीमांसा मंगल दोहा परमगुरु पद-कज नमूः ॐ सहजात्म स्वरूप ; ... .. परम कृपालु देव प्रभु, सहजानंदघन भूप...१ जिन पथ द्योतक मोहरिपु, मुमुक्षु जन-विश्राम; दुर्भग हारफ-कल्पतरू, प्रणमु आतमराम...२ १६६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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