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उदय अस्त क्रम मोहनो, हतो इ गुणठाणंत ;
मोह - नृत्य, संसारनो, एक साथ ही अन्त• • • ११३ होत आत्म स्वरूप तो, केम थाय तस अन्त ?
अविनाशी चेतन सदा, जाणे विरला सन्तः • •११४ जड चेतन सम्बन्ध त्यां, हतो क्षीर-जल जेम ;
क्षीर-क्षीर जल - जल सदा, जड़ चेतन पण तेम. . . ११५ प्रगट लक्षणे भिन्न नी, कदि न मिश्रता थाय ;
स्वभाव निज-निज नो तज्ये, निज अभाव अंकाय...११६. द्योत अंधारे मिश्रता, सम्भव नहीं त्रिकाल ;
जड़ चेततनी मिश्रता, कल्पना ज वाग्जाल ११७ 'नपति जाय' लोको कहे, भूप सैन्य ने देख; भूप सैन्य स्वरूप न भूपनुं, स्वाँग रूप नट तेम ;
सैन्यनी एकता, स्वाँगे नट तेम लेख...११८
तनांत तन भावादि को, आत्म स्वरूप न एम... ११६ भेद ज्ञान कर निज कर बड़े, विभूम वस्त्र उतार;
थाय मौनता मनतणी, ए ज समज नो सार• • •१२० मनने मौन करावीने, मुखथी करवी बात ;
मुख मौनी मनथी बके, एज जीवनी घात... १२१ समजसार नो प्रथम ए, जड़-चेतन अधिकार ;
हवे सुणं गुरु वाणीमां, कर्त्ता - कर्म विचार ... १२२ इति जड़-चेतन अधिकार
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