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काम शोक मद लोभने, दुर्गच्छा अरति क्रोध ;
मायादिक लदवद थई, थयो नारक नट योध.१०२ नर्कागार नचनक्रिया, मुख थी कहीं न जाय ;
नारक स्वांग इनाम थी, नट भणे त्राय-त्राय...१०३ आर्य अनार्य नरादिनां, विविध मानव अवतार;
भूत-प्रेत सुर असुरना, देव स्वांग बहुवार १०४ लाख चौरासी योनि कृत, स्वाँग अनंतानंत ;
शात-अशाता वेदनी 'अविरति' फल स्वादत...१०५ छल्ले मानव स्वाँगमां, लही 'विरति' नट साज,
संयम गुणथानक क्रमे, बन्यो संत नटराज...१०६ यम नियम आसन अने, प्राणायाम प्रयोग ;
तन-इन्द्रिय-मन जय करे, साधीने हठयोग".१०७ मन एकाग सुविचार थी, तन चेतन भिन्न जाण ;
दुःख कारण तन भाव तज, भाव विदेही प्रमाण १०८ राजयोग आरूढ थई, प्रत्याहारी लक्ष ;
__ आत्म-धारणा दृढ करे, स्वसंवेदन दक्ष...१०६ ध्यान सुकान अडोल धर, लीन समाधि स्वरूप;
___लब्धि सिद्धि वृन्द लोभथी, लपसे नहिं चिद्भप...११० क्षपकश्रेणी वंशे चढी, मोह केफ करी अन्त ;
अंते पर जड स्वांग तज, आप थयो भगवन्त'१११ नृत्यक्रिया काले कदी, वध्यो घटयो न क्याय 3;
हतो रह्यो तेवो ज ते, नबाई शी ए माय ?...११२
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