SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ कर्ता-कर्म अधिकार :- (अव्यवस्थित-अपूर्ण संकलना) व्याप्य व्यापक न्यायथी, कर्ता-कर्म प्रवृत्ति ; अभिन्न सत्तामय सदा, द्रव्य अवस्था वृत्ति...१ जेह सत्व छे ब्यापके, तेज व्याप्यमां जाण ; उभय स्वरूप एकत्वता, अखंड द्रव्य प्रमाण २ सर्व अवस्था व्यापतो, व्यापक द्रव्य के' बाय ; एक अवस्था रूप ते, नामे व्याप्य बदाय...३ व्याप्ये व्यापकतो छतो, व्यापक कर्ता जाण ; ____ व्यापकनु जे कार्य ते व्याप्य ज कर्म प्रमाण ४ कर्म सधे बे कारणे, निमित्त ने उपादान ; उपादान निज रूप ने, सदा निमित्त पर जाण'५ उपादान के पूर्व ने, उत्तरावस्था कर्न ; कर्त्ता नु ज स्वरूप छे, त्रणे अभिन्न ए मर्म...६ . कर्ता कोण ? निमित्त को' ? कोण स्वपरर्नु कर्म ? शुद्ध दृष्टिए ज्यां लगी, जणाय नहिं ए मर्म...७ . न्यां लगी ज पर कर्म नो, कर्ता निजने जाण ; पर चिन्ता तन्मय थई, पामे दुःख अजाण...८ प्राप्य निर्वयं विकार्य ए, कर्त्तानां त्रण काज ; निज द्रव्याश्रित थाय छे, अ अनुभूत अवाज... नबीन कम निर्वयं ने, विकार्य कृत विकार ; .. उभय रहित जे प्राप्त ते, प्राप्य कर्म निर्धार...१० १९२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy