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तन परिणामने प्राप्त जे, द्रव्येद्रिय सम्बन्ध
. भेद ज्ञान करवत थकी, वेरी ज्ञानी अबंध..६४ ज्ञान खण्ड खण्ड दाखवे, भावेन्द्रिय विक्षेप;
अखण्ड निज चिदशक्तिए, थाय ज्ञानी निर्लेप...७० ग्राह्य-गाहक लक्षणी, इन्द्रिय विषय प्रपंच ;
ज्ञय, ज्ञायक सांकर्य माँ, धरे न ममता रंच.७१ मन इन्द्रियथी आत्मा , प्रत्याहारी लक्ष ;
प्रभु गुण गण हृदये धरे, साधु जितेन्द्रिय दक्ष...७२ मोहादिकना उदयने, स्वरूपथी भिन्न जाण ;
भाव्य-भावक सांकर्यथी, रहे अलेप सुजान"७३ लब्धि सिद्धि मोह दूतिका, उभी अध विच पंथ,
छलाय ना तस छल थकी; जितमोही निग्रंथ...७४ शुक्लध्यान हथियारथी, मोह सैन्य करी अंत ;
रमे अचिंत्य स्वराज्यमां, क्षीणमोही भगवंत...७५ विभाव मात्र अस्पृश्य छे, तेथी अडे न संत ;
- ज्ञान तेज पच्चखाण छे, ज्ञाने स्पर्शन अंत७४ गही पर वस्तु भूल थी, समजे तेह छंडाय,
शरीरादि जड भाव सौ; संतथी अम तजाय.७७ राग-द्वेष-मोहादि सौ, नथी माहरां एह ;
हुं केवल उपयोगमय, भाव अममता तेह..७८ तन धन परिवारादि सौ, नथी माहरां कोय ;
हुं केवल उपयोगमय, द्रव्य अममता सोय".७६
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