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थशे मारू आ भाविमा हुँ पण एनो थईश;
. एम कल्पना मेघ थी, निपजे राग ने रीश...५४ राग द्वेष वशता लहे, मूढ स्वरूप अजाण;
निर्विकल्प उपयोग मां, रमे ज्ञानी चिद् भाण. . .६० ज्ञान-अंध मोहित-मति, रही कल्पना युक्त ;
बद्ध-अबद्ध पर द्रव्यमां, राखे ममत अयुक्त ६१ चेतनता जड ना लहे, जड़ता चेतन राय ;
जड़-चेतननी एकता, नियमा कदी न धाय...६. जड़ने हुँ- मारूं कहे, अरे! मुरख शिरताज ;
सर्वाभासे रहित तु; सदानन्द चिद्राज...६३ शिष्य :उपासना साकार नी, असिद्ध ठरे भव पाज;
दहे आत्म जुदा गण्ये, समजावो गुरुराज !...६४ गुरु:उदयाश्रित चिद्भावना, तन चेष्टाए जणाय ;
चर्या संत स्वरूपनी, साधक साधन थाय...६५ प्रभु मुद्रा जग पुज्य छे, समता शिक्षण हेत ;
उदये अणव्यापक रही, साधक शिवपद लेत"६६ प्रभु मुद्रा सहवासथी, प्रभु गुण गण सेवाय ,
प्रभु सेव्ये निज सेवना, सेवक सेव्य ज थाय"६७ विण गुण लक्षी सेवना, जड-सेवा सही फोक ; ...
__ महेल मात्र सेवन थकी, नृप सेवा रण-पोक...६८
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