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________________ परमां निजनी कल्पना, करवी ते संकल्प; ज्ञय भेदथी ज्ञानमां, भेद थवो ते विकल्प..४८ विकल्प संकल्पे भय, ए अशुद्ध वे' वार; निर्विकल्प अभ्यास मां, बाधक हेय असार...४६ अबद्ध - स्पृष्ट- अनन्य ने, अचल-असंग चिदरूप; अविशेष जे दाखवे, ते शुद्ध नय नय- भूप ५० आत्माकार सामान्य ने, ज्ञेयाकार विशेष; ज्ञानभेद धुर सुखद छे, अन्य पमाडे क्लेश... ५१ शाकाकार सामान्य जे, लूण लुब्ध स्वादंत; ज्ञेयाकार सामान्य पण, ज्ञान मूढ न छिबन्त ५२ ज्ञेयाकार सामान्य ते ज्ञान लीन थाय सँत; • पारंगत श्रुत सिन्धुनो, जन्म मरण दुःख अन्त• • ५३ दर्शन - ज्ञाने रमणता, सेव्य सदा मुनिराय; रत्नत्रयीनी एकता, निश्चय चेतन राय · · ·५४ जाणी श्रद्धी सेवतां धनार्थीओ धनवंत; - लेम मुमुक्षु यत्नथी, चेतन सेव लहंत... ५५ तन तन-भाव तन कर्ममां, हुपद वर्ते ज्यांय; .५६ देहाध्यास अज्ञानता, दुःख दावानल त्यांप... तन धन परिजन जाति के, देश नगर वन गेह; पर जड चेतन लक्षथी, वर्षे विकल्प मेह• • ५७ -आ, आ-हुँ, मारू -आ, हुं अनो, आ ठीक; ŵ हृतुं मारू आ, हुं हतो-ओनो, आ ज अठीक...५८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १८५ www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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