________________
सिद्ध स्वरूप मन मन्दिरे, पधरावी सोल्लास;
समज हेतु सुविचारथी, करू तास सहवास...५ उपज-स्थिति-लय प्रति समय, ऐक्य, परिणमन नित्य;
अनंत गुण पर्ययमयी, चिदुसत्ता निज सत्य... ६ निज चिद सत्ता - बीजने, ज्ञान भवनमा वाइ;
स्थिरता रक्षक सोंपीने, रहुं अचिन्त सदाइ...७ दर्शन ज्ञाने रमणता, ओ सनातन स्व-धर्म
राग-द्वेष- अज्ञानमां, रमवु ते परधर्म... ८
धर्मी धर्मज एकता, सहजानंद विलास;
धर्मविमुखता धर्मीनी, दुःख संतति आवास...ह
पर घर गत सति पत दहे, जडथित चेतन राय;
पर हद नृप केदी बने, निज हद सुखद सदाय...१० काम भोग बंधन कथा, जगमां सुलभ असार;
चिदानंद अनुभव कथा, दुर्लभ केवल सार... ११ चिदानन्द अनुभव विना, जे जाण्युं ते धूल;
अनुभव-पथ आरोहवा, त्याज्य प्रथम ए शूल• • • १२ स्वानुभूति गुरू सोंपी ने, निःशल्य मन निर्धार;
मुमुक्षुता बख्तर सजी, था चेतन ! होशियार... १३
Jain Educationa International
संत-बोध :
छति ऋद्धि पण भान नहीं, तेथी माँगे भीख; तुज वैभव
तुज दाखवु, माने जो हित सीख... १४
For Personal and Private Use Only
१८१
www.jainelibrary.org