________________
(१६२) दादा श्री जिनचन्द्रसूरि प्रार्थना
राग-भारत का डंका आलम में । दादाजी श्रीजिनचंद्रसुरि, गुरु दर्शन अमने आपो ने; गुरु दर्शन अमने आपो ने, अम दुःख दोहग सहु कापो ने दा० १ श्रीसंघ तणी छिन्न भिन्न दशा, छेदी करी एकता थापो ने; निर्नायकता दूरे करवा, अम युगप्रधान एक आपो ने.. दा०२ जिनरत्नत्रयी अवलंबनना, सुणीए उपदेश आलापो ने; सुणी वीनति अम बालाओनी, सद्बुद्धि सहु ने आपो ने.. दा० ३ [ स० २००३ में प्रकाशित गुजराती 'पच प्रतिक्रमण सूत्र' में प्रकाशित ]
-::(१६३) समज-सार
चारभुजा रोड आश्विन सं० २००७ जड़-चेतन अधिकार :पूर्ण ब्रह्म शुद्धातमा, चिदानंद सद्राज;
परम कृपालु स्वरूपने, नमु अभिन्न थई आज...१ 'स्यात्' पदांकित शब्द-ब्रह्म, कृपा शारदा माय;
स्वानंदे निजमां रमु, समज-सार प्रगटाय...२ शुद्ध चिन्मूर्ति ते छता, छे स्व-परिणति अशुद्ध
रागादिक मल अशुद्धता, थाय समज थी शुद्ध ..३ साध्य शुद्ध निज आतमा, तास थापना सिद्ध
अविच्छिन्न सेवन थकी, साधक थाय समृद्ध...४
१८०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org