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________________ (१७८) धर्ममाता धनबाई धन-धन धर्म माता धनबाई, मेरी नैया पार लगाई - धन० सात हजार वर्षों पर मैं था, रुद्रमुनि मिथ्यात्वी बड़ा ही धन० आत्म-भान विनु तप तपता था, कंठ भुजा रुद्राक्ष सजाई धन० मिथ्या देव गुरु धर्म प्रचारक, कर्त्ता-धर्त्ता मान बड़ाई... धन० व्याधिग्रस्त असहाय बना तब, महासति तुम करुणा वरसाई धन० खान पान औषध उपचारे, स्वस्थ बनाया निच्छलताई "धन० जैन धर्म का मर्म बताया, जैनी बनाया ढोंग छुडाई धन० क्रमशः हुआ मैं जिनदत्तसूरी, युगप्रधान आचार्य बड़ा ही धन० अब मैं हूँ देवेन्द्रदेव यहाँ, गुरु स्थानीय शक्रेन्द्र सभाइ धन० अगले भव भव मुक्त बनूंगा, हे सति ! ये सब तेरी कृपाइ धन० प्रत्यक्ष हो गुरु दत्तसूरि वर, निज घटना यह मुझको सुनाई धन० सहजानंदघन प्रमुदित होकर, शीघ्र ही पद्यारूढ बनाई ... धन० (१७६) अलख बाबो १७० देख्यो री मैंने अलख बाबो जी ऐसो (२) औरत को ये स्वांग सजा कर, ला सत्पुरुप ही जैसो· · दे० सहजानंद रस छाक छक्यो फिरे, सुरनर सेव्य अशेषो· · · दे० अंतर सावधान निज ज्ञाने, बहिरंग विचित्र निवेशो... दे० लोक दिखावन खावत - पीवत, हंसे हसावे को कैसो " दे० अंधी दुनियां समझ न पावै, करे प्रवर्त्तन तैसो " " दे० धन धनुबाबो परख्यो हरख्यो मैं, जैसो देख्यो कहूँ तैसो. दे० Jain Educationa International ... For Personal and Private Use Only १-१-६५ www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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