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________________ (१७६) सांवत्सरिक खामणा २०२० भा० सु० ४ गुरुवार ता० १०-६-६४ गजल-कव्वाली खमा सर्व जीवो ने, थयां होय दोष जे म्हारा; भवो भव ना बधा खमजो, क्षमा धर्मे रही प्यारा...१ कर हूं पण क्षमा सौ ना, थयां होय दोष म्हारी प्रत्ये; परस्पर खमो खमावी नै, आराधक आपणे थइये २ निःशल्य थवा तणी ए रीत, सर्वज्ञ बतावी छ । हृदय नी शुद्धता करवा, प्रणाली आत्म हितकर ए...३ मिच्छामि दुक्कडं मागु, परम गुरुराज नी साखे ; करो स्वीकार सौ जीवो, ओ सहजानंदघन भाखे...४ (१७७) महासती महिमा १५-६-६४ जगमाता मैंने देखी अद्भुत मूरति, अ० जग० जिन्हें प्रगट सर्वांग आतमा, हो गई नष्ट मिथ्यात्व मती.. जग० पैर चुंबत है अष्ट महासिद्धि, नव निधि रिधि विस्तृत अती.. जग० गगन विहारे महाविदेहे; वंदे शास्वत तीर्थपति • जग० कभी जायँ ए द्वीप नंदीश्वर, देव-देवी सह करें भक्ती.. जग० कभी जाय ए इन्द्रसभा में, धार्मिक संवादे सुरति जग० विनय करें इन्द्रादिक फिर भी, गर्व न धरें अकल विभूति जग० ऐसी अदभुत आत्मदशा पर, महिमा न जाने अल्पमती.. जग० बाह्य वेश व्यवहार देख कर, कर्म बांधे कोई निंद्यमती.. जग० बंदो निंदो हर्षे शोक नहीं, सदा रहें निज अलख मस्ती. अग० धन-धन हे धनदेवी महासती, आशीष सहजानंद वती.. जग० १६६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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