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(१७५) प्रेरणा
शरद पूनम २०२०
(हम्पी) ता० ३-१०-६३ हां रे शुद्ध प्रेमी सत्संगी सौ आवजो हो राज !
जंगल मां भक्तो नी झुपड़ी... हारे मले देशी साथे तेड़ी लावजो हो राज ! जं० देशी आत्म बुद्धि धरे, आत्म स्वरूप मां प्रज्ञ ;
आत्म बुद्धि जड़-देह मां, ते परदेशी अज्ञ... हारे परदेशी नो संग नवि जोड़जो हो राज. जं० १
धर्म क्रिया परदेशी नी, अन्तर्लक्ष विहीन ... तप-जप किरिया खप करी, भवो भव भटके दीन ; हारे दृष्टि अंधा ना धंधा ए तोउजो हो राज 'जं० २ वाह्य क्रिया वेषादि मां, बलग्या दृष्टि अंध;
गच्छ मत ममता थी लड़े, लहै न धर्म सुगंध... हारे तेथी खोटी चर्चा नवि छेड़जो हो राज जं. ३
संत इशारो सांभली, करो निज लक्षे भक्ति; देह भान भूल्ये सधे, सहजानन्दधन युक्ति .. हारे तमे शिक्षा ए न्याय थी तोलजो हो राज जं० ४
शरण-स्मरण गुरुराज नु, एक ज निष्टा होय
आत्म-ज्ञान-समाधि ने, पामे नियमा सोय. जं. हारे हैयु भक्ति ना रंगे रंगावजो हो राज. जं०५
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