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________________ (१७३) मंगल दीपक रहस्य पद हम्पी १७-४-६२ जग मग जग मग जग मग हीया, . प्रगटाया प्रभु मांगलिक-दीया, अपने घट किया मांगलिक दीया, . अहं मम गालक अर्थ-प्रक्रिया...१ केवल दर्शन-ज्ञान स्वकीया द्विविध चेतना निज रस प्रिया : · भूम तम विघ्न विनाशक क्रिया अनंतवीर्य अरि-अंत करी या...२ अनंत चतुष्टय स्वाधीन जीया, मंग-स्व सहजानंद-पद लीया : मंगल दीप रहस्य सुधीया ! ___अंतरंग विधि अनुभवनीया...३ (१७४) नूतन दम्पति ने मंगल आशीष दोहा १२-५-६२ भोग शरीर संसार ए, छे अनादि भव रोग। चिकित्सक थइ ने हरो, सहजानंद सुयोग ॥१॥ व्यभिचार न थवा कह्यो, दम्पति धर्म आचार। करो धम अंकुश थी, काम अर्थ व्यवहार ॥२॥ विना धर्म अंकुश थी, काम अर्थ ज अनर्थ । धर्मा कुशे मोक्ष दे, एज काम में अर्थ ॥३॥ सहजानंद स्वरूप छे, निर्विकार चिद्र प विकार विष ने विरेचतां, सहजानंद अनूप ॥४॥ आशीस म्हारा वांचजो, नूतन दंपति आज धर्म मर्याद न छोडजो, सहजानंद जहाज ||५|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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