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(१८०) अनुपम बाग [कुनूर-नीलगिरि]
वै० १५.२०२२ आये हम अनुपम बाग कुटीर
. अनुपम बाग कुटीर आये० अनुभव-रस परिपुष्ट होइ जहां, बहत सुज्ञान सलील ; आतम-हंस किलोल करत यहां, रोम हंसावे समीर"आये०१ त्रिविध ताप उताप न लागत, मेटत भव भय पीर... उन्नत नीलगिरी शृंग बैठत, होवत सबही अमीर.. आये०२ कुनूर भी सुनूर बनत यहां; छी लर होत गंभीर ; सहजानंदघन विलसत निशिदिन, रमता राम सुधीर.. आये०३ (१८१) प्रेरणा
ता. ६.४.६७ पद कच्छी भाषा में औयें कित्त सुत्तो तु टंगु पसारी मुरखा! बाजी वों तो हारी... (२) मोह निधर जे सुपने में तु, भक्के उधरखी भाई ! जड़-काया के पिंढ रूपें मंत्री, केडी कयें मुडसाई.. ॲयें. १ तोजो-मुंजो कयें वाटणी, तें में कैंये लड़ाई; घडीक सुखी ने घडीक दुखी मंत्री, केडी कैंयें नफटाई.. #यें० २ घडीक टोंक हैं मुरके, धुरके-धडीक दंध किकडाइ दुस्का भरी-भरी घडीक रूंएं तु, घडीक फुन्ने हिच्चकाई.. ॲयें०३ जाग-जाग तुं अख्यु उध्घाडी, न्यार स्वरूप अच्छाई, अयें मुक्त संसार सुपन सें, सहजानन्द सवाई.. अँ०४
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