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छे द्रव्य स्वभावै अविनाशी, स्व चतुष्ठय निज घर नो वासी; ___ परमाणु जीव कदि कोइ थी, बने न बगड़े.. कदि० २ सौ द्रव्य स्वसत्ताए ज सत्, पण पर सत्ताए सौ असत् ;
नहिं कोई परस्पर कर्ता भोक्ता सघले. कदि०३ तो पित्ताशय शाथी बगड्यु? तेथी आनंदधन ने दुःख शु? अम धर्म-मर्म सहजानंद नोबत गगड़े "कदि०४ (११८) संसार मार्ग पद
२८-३-५४ [चाल-मार वतन आ मार वतन-ए ढब] अम थयु पतन थयु तारु पतन, चेतन ए अनादिय तारु पतन । दृष्टि-दृश्य परस्पर बांधी, मिथ्यात्वे कर्यु आत्म-वमन 'अम० दृष्टि-मोह चण्डाल चौकड़ी, कर्यो अंध हरी हृदय नयन अम० आत्म अज्ञाने चरम नेत्र थी, स्वरूप खाते खतव्यो तनः अम० देह हुंज दृढ़ देहाध्यासे, जड़-चल-जग ॲठवाड़ रमन • अम० पोषत निशदिन गंदी काया, को मूत्र-मल बहु जल-अन्न.. अम राग-द्वेष भवबीज लणे नित्य, खेड़े पंच विषय विष-वन अम० उत्पत्ति-व्यय जड़ पर्यय-धर्मो, ते माने निज जन्म मरण"अम० केदी हतो नव मास जे गटरे ते भोगववा उगत-मन. • अम० अन्य-केदी जे निज जन मान्या, ममताए करे तेनु जतन."अम० अज्ञ भान्ति-अविरति ठग-द्वारे, गिरवी मूक्या त्रणे रतन अभ० घउगति चोपड़ खेली हार्यों, रत्नत्रयी सहजानंदघन'"अम०
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