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(११६) उपशम श्रेणिए विध्न
राग भैरवी मारग मां लँट पांच जणी...(२) देखड़ावी त्रण-लोक सिनेमा, पहेली लूटे बनी ठनी; आत्मा भूलवे दृष्टि फसावे, दृश्ये सुख नहिं एक कणी.. मारग० १ गाम-मूर्छना-ताल-लये थी, सप्त स्वरे अंबर-गुजणी; अगम-रेडिओ गान आलापी, लूटे बीजी गायकणी मारग०२ दिव्य-पुष्प-रज दिव्य-सुगंधी, हीना अतर-फुलेल तणी; महक फेलावी लूट चलावे, लूटारी त्रीजी सूंगणी · मारग० ३ सहस्रदले कर्णिका थी रस, वरसाचे एक धार छणी%B अमृतधारा कही ललचावे, लूटारी चौथी मेघणी; मारग०४ दिव्य स्पर्श थी फसवे पांचमी, दिव्य विषय जड़ नागफणी; सहजानन्दधन उपशम श्रेणी, पटकावे वृत्तिओ ठगणी; मारग०५ (१२०) मोक्षमार्ग पद
२८-३-५४ - [चाल-मारुचतन आ मारुवतन] भव्य ! करोजतन, भव्य करो जतन निजरत्नत्रयी ने करो जतन; दृश्य प्रपंच थी दृष्टि हटावी, द्रष्टामा करीले स्थापन भव्य० अनंतानुबंधी कषाय चउ, दर्शनमोह नु थाय वमन...भव्य० दृष्टि-दृश्य नी गांठ कपातां, प्रगटे गुण सन्यग-दर्शन भव्य० आत्मानुभव-लक्ष-प्रतीति. प्रगट जणाय देहादिक भिन्न भव्य० टले अज्ञान ज्ञान गुण सम्यक् . श्रद्धा ज्ञाने स्वरूप रमण "भव्यक आत्म प्रदेशे स्थिरता सम्यक, चारित्र गुण ए आत्मवतन भव्यक रत्नत्रयी एकत्त्व अभ्यासे, प्रगटे केवलज्ञान स्वधन भव्य० सिद्ध-बुद्ध-परिमुक्त ए चेतन, कृतकृत्य सहजानंदघन "भव्य०
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