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(११५) अपने को मजो पद ..
पावापुरी २८-६-५३ भज मन सहजानंद स्व-शक्ति.... निरावरण निज ज्ञान-चेतना, कारण-प्रभु गही युक्ति परम परिणामिक स्वभावस्थित, अनंत चतुष्टय भक्ति ... . सेवत स्वाति-बंद परमोल्लासे, पावत मौक्तिक शुक्ति... रत्नत्रय एकत्वे सेवत, कार्य प्रभु पद व्यक्ति... आपको सेवत आपको पावे, शुद्ध-बुद्ध-परिमुक्ति...
(११६) सद्गुरु-सत्संग राग-धन्याश्री
१५.३-५४ साधक ! कर सद्गुरु सत्संग... द्रव्य, क्षेत्र, ने काल, भाव थी, जेओ अमम असंग सा० ज्ञायक आत्म स्वभाव मां जेनी, स्थिरता चित्त तरंग सा० द्रव्य, भाव-नोक, उदय नां, केवल साक्षी प्रसंग.. सा० कर्म कर्मफल त्यागी धरे एक, ज्ञान-चेतना रंग...सा० आप आपमां आपथी विलसे, सहजानंद अभंग...सा० (११७) शरीर पद
२८-३.५४ दिलमां दिवड़ो थाय.. ए ढब आ वात-पित्त-कफ मल जड़ पुद्गल, अवस्था बदले,
कदि द्रव्य ध्रुवता न टले..." क्षण क्षण प्रति मल विखरावु, वर्णादि गुण नुं पलटावु,
ए पुदगल-पर्ययधर्म, न परने कनड़े कदि०१
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