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तुझ दर्शन ने तलसी तलसी, नयणा सूज्यां दोय । निंदरडी वेरण थई वटकी, निशि उजागरां होय ॥३।। खान पान सौ झेर थयुं मुझ, ओसड़ लागे न कोय । तड़फो तडफी तनहुं झूरे, ध्यान आणो तोय ॥४|| अवडं ताणे शीद पियुजी, हांसी टाणुं नोय । सहजानन्द प्रभु तुम दर्शन थी, सहज समाधि होय ॥५।।
(८८) रहस्य-पद
राग-कालिंगडो त्रिताल सखी मारे आखं जगत भगवान। केने कहुं हुं ? शु' समजावं ? आतम राम अजाण ॥सखी।।१।। जल डूबेला जेम सुणे नहि, मायारत हित वाण । काढवा जातां सामो बूबाड़े, डब्या ने शी शान १ ॥सखी|२|| जेणे पोख्यो गर्भ अंधे शिर, पोषे जिन्दगी प्राण । फोकट चिंता करी करी मूरख, करे आतम धन हाण ॥सखी॥३॥ करे धणीयो जड वहीवट नो, घर धंधो धूल धाण । हांसी आवे सखि सुमति मने तो, जोइ एनुरम खाण ।।सखी||४|| क्रुद्ध करी ने धूल वाली पछी, मांगवा बैठो धान । आप्युबीज ओम् स्वाहा करी ने, केवु करे जो तोफान सखी।।५ दुख आपी ने सुख मांगे शे, दाखवी झूठ लखाण । बेशरमा ने लाज न आवे, करतां झूठ डफाण सखी॥६॥ देह भोगवे देहे करेला, तूं' शी मांडे मोकाण ? छे सुख दुख ए देह कर्म फल, तूं थी भिन्न प्रमाण ॥सखी।।७।। जन्मी मरे छे देह वस्त्र जेम, तूं अजरामर भाण । तूं तारी संभाली चाल्यो जा, सहजानन्द रूठाण ॥सखी॥८॥
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