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प्रेरक गण जो ईश तो कहे कम ते ईश्वर ठरे ?...५ जेम तूष सहित के रहित बंने अवस्था अक्षत-तणी , तेम बद्ध-मुक्तज जीव-ईश्वर अवस्था एक आत्मनी : छे जीव-शिव-पद, व्यक्ति नहि तोय व्यक्ति रूपे प्रभु भजे, ते जीव-अहँता नष्ट करवा संत सौ युक्ति सजे...६ जो जीव नहिं तो जीववा तु कम तल-पापड बने ? तो पड्यो रहे पत्थरा समो कम अहि तहिं भमतो भमे ? जड ईश शंका कम करे ? तुजीव शंकाशील छो, माटे तु तन थी भिन्न आत्मा छोज छोज विचारी जो...
आत्म-अस्तित्व सिद्धि दोहा । तन वस्त्रादिक छेन जो, तो आत्मा पण छेज : निज-निज द्रव्य स्वभाव थी, जड-चेतन बंनेज...१ दृश्य-ज्ञय ज्यां त्यां प्रगट, जाणनार जोनार : स्व-पर-काशक आतमा, चित सत्ता निरधार...२ सत्ता भिन्न जल-ग्लोब थी, बिजली जेम प्रमाण : तेम वस्त्र-तन थी जुदी, चित-सत्ता सप्रमाण...३
आत्मा पद, हुं तो आत्मा छ जड शरीर नथी (२) प्रेम मसाण नी राख नो ढगलो, पल मां विखरे ठोकर थी; मुझ वण ए शव पूजो बालो,ज्ञायकता नहिं सुख-दुख थी. • हुँ १ स्पर्श गंध रस रूप शब्द अने, जाति वर्ण लिंग मुझ मां नथी : फिल्म बेटरी प्रेरक जुदो, तेम देहादिक भिन्न मुझ थी. हुं २ .
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