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सर्वोत्कृष्ट स्थानक कह्यो, सम्यग्दृष्टि-निवास : षट्-पद आ ज्ञानी जने, सहजानंद विलास...८
हरिगीत छन्द . ... आ शुं बधु ? छे विश्व आ-समुदाय जड़-चेतन तणो, . द्रष्टा जने जड़-दृश्य फिल्म तणो सिनेमा प्रांगणो ; आनंद-सुख-दुख अनुभवे जाणे जुओ चेतन सही , . जाणे न निज पर ने न सुख-दुख अनुभवे ते जड़ अहीं...१ देखाय आ, तेम होय आत्मा केम ते देखाय ना। देखाय ना जड़ आँख थी छे अरूपी चेतना ; ' ज्यां दृश्य छे त्याँ दृश्य-दृष्टि उभय नो द्रष्टा य छे , निज-पर-प्रकाशक आत्मनी चैतन्य सत्ता प्रगट छ...२ हूं कोण ? तु छो सिद्ध सम सत्तामयी आत्मा अहो ! शुदेह हूँ ? ना देह बल थी भिन्न तु बिजली संमो; शु इन्द्रि हुँ ? ना इन्द्रियो छे गोख देह-मकान ना, शाथी कहो ? कहुं अनुभवे शव ने तुजो शमशान मां...३ शु प्राण हुँ ? ना प्राण जड जाणे न गाढ सुषुप्ति मां , अन्तःकरण हुँ ? ना तेहनो तु छोज प्रेरक आतमा ; केम होय प्रेरक जीव ? ज्यां प्रेरक छते ईश्वर खरे ! प्रेरक गणे जो ईश ने तो जीव सत्ता नव ठरे...४ जीव ज नहीं तो दुख कोने ? आत्म साधन कोण करे? सत्संग भक्ति त्याग वैराग्यादि साधन व्यर्थ रे! प्रेरे प्रभु शु जठ हिंसा चोरी जारी मां अरे !
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