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(७२) षट् पद रहस्य [कर्णाटक देश में गोकाक ग्राम समीपस्थ गुफा में श्रीमदराजचंद्र प्रणीत षट पद-पत्र के रहस्य स्वरूप स्वतंत्र रचना प्रारम्भ १-४-५४]
- सद्गुरु-स्तुति दोहा परमकृपालु देव-प्रभु, अहो ! प्रगट महावीर !!! सद्गुरू राज-पदे धरू, श्रीफल स्थल निज शिर...१ ओलखावी निज आतमा, कीधो रंकथी राज : भव भान्ति थी छोडव्यो, अपी आत्म स्वराज...२ अनन्य आत्म-शरण-प्रदा, सद्गुरू युगपरधान : चरण-कमल नी वेदी पर, करूं आत्म बलिदान...३ सप्तधातु-रस भेदी ने, अचिन्त्य परमोल्लास : आज्ञांकित थइ ने वसुं, सद्गुरु चरण आवास...४ सद्गुरु रविकर थी खुली, हृत्कज अंतर दृष्टि : - अनुभव हंस विलास त्यां, सहजानंदघन वृष्टिः . .५
प्रेरणा सद्गुरु-पद वंदन करी, कहुं स्व-अनुभव रीत ; आत्मार्थी संत्संगी तु! सांभल थई एक चित्तः . .६
___ भूमिका आत्मज्ञान प्रगटाववा, कीजे आत्म-विचार ; अविच्छिन्न तन्मय पणे, षट् पद थी निर्धार...
हर
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