SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चरितम् विद्वत्सभा प्राप्त जयः सदैव, स्याद्वाद शैल्यागम तत्ववेत्ता। आसीद् भृशं श्रीजिनचन्द्रसूरि, विद्वत्तया सर्व जने प्रसिद्धः ॥६५॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥ व्रतित्व विद्वत्त्व गुणित्व सौम्य- दमित्व सौरभ्य मलं गुरूणाम्, स्वैरेण सर्वत्र विसर्पमाणं, साहेः सभायामगमत्क्रमेण ॥६६। इतश्चाकबरः सम्राड् , धर्म जिज्ञासु सन्नयी। गुणज्ञः समदृष्ट्याऽभू त्सर्व धर्म प्रपश्यकः ॥६७॥ आकार्य स्वसभा मध्ये, सर्व धर्म विशारदान् धर्मोपादेय तत्त्वस्य, संग्राहक सचा जनि ।।६८।। यद्यप्यनार्य जातीय, कुलोद्भवस्तथाप्यभूत्।। सोधिकाधिक कारुण्य, भाव वासित मानसः ॥६६॥ दीन दुस्थ जनोद्धार-करणं स निजात्मनः । परम कृत्य मज्ञासी, दार्यानार्य प्रजा समं । ७०।। सद्विद्वद्गोष्टि शास्त्रार्थो-पदेश श्रवणे भवत् । अत्यन्त रसिक सम्रा, डकबर जलालदीः ।।७१॥ ततः सर्व मतालम्बि-विद्वांसस्तस्य संसदि । तन्मध्ये जैन विद्वांसो, प्यासन्सद्बुद्धिशालिनः ॥७२।। हीरविजयसूर्यादि- जैन विद्वत्समागमात् । ववर्धे जैन धर्मानु-रागोस्य प्रति वासरम् ।।७३।। लाभपुरे न्यदा सम्राट् , संस्थितोस्ति नरेश्वर । प्रगुणे कोविदव्यूहे, गुणा गुणविचारिणि ॥४।। ४१] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003816
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherAbhaychand Seth
Publication Year1971
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy