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'घातक मिथ्यात्व आदि पापों को स्वयं हरण करके उनसे साधकों को छुड़ाने वाले धणी-धोरी होने से अधहर, अधमोचन, धणी-धोरी और भ्रान्ति-मुक्ति, अज्ञान-मुक्ति, असमाधि-मुक्ति, विदेह मुक्ति आदि मुक्ति-पदों में से सर्वोत्कृष्ट परिनिर्वाण-पद को प्राप्त करने वाले योगी होने से मुक्ति परमपद साध भी वे ही हैं।
८. इस तरह शब्दों का सीधा-साधा अर्थ बतलाने वाली अभिधा-शक्ति की दृष्टि से अनेक गुण निष्पन्न नामों को धारण करने वाले भगवान एक वे ही हैं, पर व्युत्पत्ति मूलक वह भगवन्नाम रहस्य केवल अनुभवगम्य होने से सभी को समझने में नहीं आता, अतः सद्गुरु कृपा से गुरुगम पूर्वक इस रहस्य को समझ कर यदि कोई भगवान की इस जिनदशा की लक्ष्य पूर्वक आराधना करे तो उसके हृदय में भगवान स्वयं आनन्दघन के रूप में अवतरित हो कर उसे भी आनन्दघन बना दें।
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