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६. श्री पद्मप्रभु स्तवनम् परमात्मा के प्रति अन्तरात्मा की पुकार :
१. सत्पुरुष बाबा आनन्दघन की अन्तरात्मा, परमात्मा पद्मप्रभु के प्रति पुकार कर रही है कि हे जिनेश्वर ! आपके और मेरे बीच में जो यह अन्तर है, वह कैसे मिटे ? भगवन् ! अब तो यह दूरी मुझसे सही नहीं जाती। तब यकायक आकाशवाणी हुई।
आकाशवाणी-हे अन्तरात्मा ! अपने पारस्परिक अन्तर का कारण तो तुम्हारा कर्म परिणाम है। इस कर्म परिणाम के रहस्य को यदि समझना है, तो कर्मविपाक के प्रतिपादक शास्त्रों को देखो, जिनमें श्रुतज्ञानी सत्पुरुषों ने कहा है कि :
२. कर्म परिणाम दो तरह के हैं, एक चिद्विकार -रूप और दूसरे जड़-विकार-रूप। ये दोनों ही चेतन और जड़-पुद्गलों के पारस्परिक निमित्त से होते हैं। चिद्विकार-राग, द्वेष और अज्ञानमूलक हैं जिन्हें भाव-कर्म कहते हैं, और जड़-पुद्गलविकार कार्मण तथा औदारिक आदि रूप हैं, जिन्हें क्रमशः द्रव्य कर्म और नोकर्म कहते हैं। आत्मप्रदेश स्थित क्षीर-नीर वत् इस त्रिवेणी संगम को बन्ध कहते हैं।
द्रव्य कर्म का बन्ध चार प्रकार की परिस्थितियों को लेकर होता है।
(१) प्रदेश बन्ध–जीव कृत आत्म प्रदेश-कम्पन के अनुरूप नियत संख्या में कार्मण पुद्गल-स्कन्धों का गैस होकर अनुभव-प्रमाण चैतन्य प्रदेश में सर्वांग फैल जाना।
(२) स्थिति बन्ध-जीव की कम्पन कालीन भावना के अनुरूप उस गैस का बादल के रूप में वहीं नियत काल-मर्यादा को लेकर टिकना। (३) अनुभाग-रस-बन्ध-जीव की शुभाशुभ भावना के फल
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