________________
श्री सम्भव जिन स्तवन ( राग रामगिरी-रातड़ी रमीने किहां थी आविया, ए देशी )
संभव देव ते धुर सेवो सबे रे, लहि प्रभु-सेवन भेद । सेवन कारण पहिली भूमिका रे, अभय, अद्वेष, अखेद ॥ सं० ॥१॥
भय चंचलता जे परणामनी रे, द्वेष अरोचक भाव । खेद प्रवृत्ति करतां थाकिये, दोष अबोध लखाव ॥ सं० ॥२॥
चरमावर्तन चरमकरण तथा, भव परिणति परिपाक । दोष टलै वलि दृष्टि खुलै भली, प्राप्ती प्रवचन वाक ॥ सं० ॥३॥
परिचय पातक घातक साधुस्यू, अकुशल अपचय चेत । ग्रंथ अध्यातम श्रवण मनन करि, परिसीलन नय हेत ॥ सं० ॥४॥
कारण जोगे कारण नीपजै, एमां कोइ न वाद । पिण कारण विण कारज साधिय, ते निज मति उन्माद ॥ सं० ॥५॥
मुग्ध सुगम करि सेवन आदरै, सेवन अगम अनूप । दीज्यो कदाचित सेवक याचना, 'आनन्दघन' रस रूप ॥ सं० ॥६॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org