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xxxxix साहित्य को अनेक मूल एव नकलें हमारे संग्रह में है जिनमें से उन्हें खोज निकालना अभी संभव नहीं। गुरुदेव ने चौवीसी के जिन पाठों को स्वीकार किया वह भी प्राप्त न होने से मुद्रित प्रतियों का मूल पाठ ही इसमें दिया गया है क्योंकि गुरुदेव ने केवल विवेचन ही लिखा था। परमपूज्य माताजी ने मुझे कई वर्ष पूर्व छपाने के लिए आदेश दिया था । मैंने १७ स्तवन तक गुरुदेव का विवेचन और काकाजी अगरचंदजी ने निर्देशानुसार श्रीमद् ज्ञानसारजी के बालावबोधानुसार पूरी चौवीसी का अर्थ सम्पादन कर प्रेस में देने के लिए रखा था और हम्पी की कापी वापस भेज दी पर मेरे पैर में फैक्चर हो जाने से वह प्रेस कापी हमारी कलकत्ता गद्दी में इतस्ततः हो गई। फिर माताजी की आज्ञानुसार गुरुदेव के विवेचन और अवशिष्ट स्तवनों को मूल रूप में ही प्रकाशन किया जा रहा है। परमपूज्य गुरुदेव ने श्री आनंदघन चौवीसी स्तवनों के भावानुरूप चैत्यवंदन चौवीसी और स्तुति चौवीसी की रचना की थी जो परम उपयोगी होने से अन्त में दी गई है।
आनंदघन चौवीसी स्तवनों के पाठान्तर प्रचुर परिमाण में मिलते हैं पर निर्णयात्मक पाठ तैयार न होने से प्रचलित पाठों में दो चार साधारण अन्तर है वह यहाँ देता हूँ।
१. श्री ऋषभदेव स्वामी के स्तवन में ५ वीं गाथा-कोई कहै लीला रे अलख-अलख तणोरे' के प्रकाशित पाठ के स्थान पर ललक अलख, रखा है जिसमें पुनरुक्ति दोष नहीं रहता। श्री कापड़ियाजी ने भी यही पाठ स्वीकार किया है।
२. पद्मप्रभ भगवान के स्तवन में गा-६ में "तुझ मुझ अंतर-अंतर भाजसे, वाजसे मंगल तूर" में ० अंतर-अंतए भाजसे, दिया है। इससे पुनरुक्ति दोष नहीं रहता तथा अर्थ विचारणा में भी प्रारंभ में प्रभु से पूछा है आपका और हमारा अन्तर कैसे मिटेगा? स्तवन में विश्लेषण
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