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लेकर मोक्ष जायेंगे। उपाध्यायजी भी देवलोक से मनुष्य होकर मोक्ष जायेंगे। पर श्रीमद् देवचंद्रजी तो अभी महाविदेह क्षेत्र में केवली रूप में विचर रहे हैं। मणिचंद्रजी के विषय में भी कहा कि वे महाविदेह में मनुष्य हो कर कवलज्ञान व मोक्ष प्राप्त करेंगे। राजनगर में शासनदेव की हयाती है।
इस किंवदन्ती को २-४ श्रावकादि में भी सुनी लिखा है। किन्तु योगीन्द्र युगप्रधान गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी महाराज ने अपनी आत्मानुभूति/दिव्य शक्ति से अनेकशः निश्चयपूर्वक लिखा है कि श्रीमद् आनंदघनजी, श्रीमद् देवचंदजी और श्रीमद् राजचंद्र तीनों महापुरुष महाविदेह में केवली रूप में विचरते हैं। अभी-अभी श्री हम्पी तीर्थ में विराजित परमपूज्या आत्मद्रष्टा, लब्धि-सिद्धि सम्पन्न माताजी को पूछने पर उनके द्वारा भी मैंने तीनों महापुरुषों के महाविदेह में केवली होने का समर्थन पाया है। - गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी के अनेक भवों से आत्म साधना की प्राप्ति होती रही थी। इस भव में भी आत्म साधना का तीव्र लक्ष्य था। बारह वर्ष पर्यन्त खरतरगच्छ की सुविहित परम्परा में दीक्षित हो विद्याध्ययन कर फिर गुफा वास करने लगे। आध्यात्मिक ग्रन्थों के परिशीलन का लक्ष्य प्रारंभ से ही था। श्रीमद् देवचंद्रजी और आनंदघनजी का तो साहित्य प्रकाशित ही था। श्रीमद् ज्ञानसारजी का साहित्य आपकी ही विशेष प्रेरणा से हमने आंशिक रूप में विस्तृत प्रस्तावना-जीवनी-सहित प्रकाशित किया था। आनंदघनजी की चौवीसी और पदों की प्राचीतम प्रतियाँ प्राप्त कर उनके समक्ष प्रस्तुत की। सं० २०१० पावापुरी में उन्हीं की हमें प्रेरणा से हमने संग्रह करवाया। श्री उमरावचंदजो जरगड़ को भी बहुत सी प्रतियाँ व नकलें कर के दी। हम्पो में गुरुदेव को भी प्रेसकापी करके भेंट की। उन्होंने ९० पदों का वर्गीकरण करके दिया था वह तथा चौवीसी
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