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________________ xxxxvii ज्ञात होता है कि आनंदघनजी बाल्यकाल से धार्मिक वातावरण और आत्मचिन्तन में जीवन बिताते थे अतः इस समय उनको अवस्था लगभग १८ वर्ष की हुई होगी अतः उनका जन्म सं १६६० के आसपास होना चाहिए और दीक्षा सं० १६७९-८० के आसपास हुई होगी। इस हिसाब से श्री आनंदघनजी ने पचास वर्ष पर्यन्त संयम मार्ग की साधना अवश्य ही की थी। यद्यपि उनके महाप्रयाण के संबंध में जैन साहित्य तो सर्वथा मौन है परंतु परणामी संप्रदाय के संस्थापक प्राणलालजी जो आनंदघनजी के समसामयिक थे, के जीवनचरित्र में उल्लेख है कि"श्रीप्राणलालजी एक समय से १७३१ से पूर्व मेड़ता गये थे। उनका मिलन और शास्त्रार्थ भी आनंदघनजी से हुआ जिसमें उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं हुआ जिनमें ( आनंदघनजी ) पराभव होने से उन्होंने कुछ प्रयोग प्राणलालजी पर किये किन्तु उससे उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं हुआ। जब वे दूसरी वार मेड़ता गये तब उनका ( आनंदघनजी का ) स्वर्गवास हो चुका था।" ___ अतः आनंदघनजी का महाप्रयाण सं० १७३१ में हुआ प्रमाणित है । श्रीमद् आनंदघनजी की उच्च साधना और आत्मानुभव, देखते उनकी गति के सम्बन्ध में श्री बुद्धिसागरसूरिजी महाराज ने उन्हें स्वर्गवासी और एकावतारी लिखा है। सं० १९८० में प्रकाशित आत्मदर्शन में भी अहमदाबाद के यतिवयं मणिचंद्रजी महाराज जो (सं० १८९० से ९९) रक्तपित्त महारोग होने पर भी समाधिलीन रहते थे। श्री सीमंधर स्वामी ने एक देव के समक्ष उनकी भाव चारित्रिया के रूप में प्रशंसा की। वह देव मणिचंद्रजी के पास आया और आत्मदशा देख कर प्रसन्न हुआ। श्री मणिचंद्रजी ने उससे चार प्रश्न पूछे (१) श्रीमद् आनंदघनजी (२) श्रीमद् देवचंद्रजी और (३) उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी के कितने भव बाकी है ? तथा राजनगर-अहमदा बाद में शासनदेव की उपस्थिति है कि नहीं। उस देव ने श्री सीमंधर स्वामी से पूछ कर कहा-आनंदघनजी देव हुए हैं वहाँ से मनुष्य जन्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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